सुनो जी भैरव लाड़िले,कर जोड़ कर विनती करुं ।
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सुनो जी भैरव लाड़िले,कर
जोड़ कर विनती करुं ।
कृपा तुम्हारी चाहिये,
मैं ध्यान तुम्हरा ही धरूं ॥
मैं चरण छुता आपके,अर्जी मेरी सुन लिजिये ।
मैं हूं मति का मंद,
मेरी कुछ मदद तो किजिये
महिमा तुम्हारी बहुत,
कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूं
॥सुनो जी भैरव लाड़िले… ॥
करते सवारी स्वान की, चारो दिशा मे राज्य है
जितने भूत और प्रेत हैं ,सबके
आप ही सरताज हैं
हथियार हैं जो आपके,
उसका क्या वर्णन करूं
॥सुनो जी भैरव लाड़िले… ॥
माता जी के समने तुम, नृत्य भी करते सदा
गा गा के गुण अनुवाद से,उनको
रिझाते गन हो सदा
एक सांकली है आपकी ,
तारिफ उसकी क्या करूं
॥सुनो जी भैरव लाड़िले… ॥
बहुत सी महिमा तुम्हारी,मेंहदीपुर सरनाम है
आते जगत के यात्री,
बजरंग का स्थान है
श्री प्रेतराज सरकार के,
मैं शीश चरणों मैं धरूं
॥सुनो जी भैरव लाड़िले… ॥
निशदीन तुम्हारे खेल से, माताजी खुश रहें
सर पर तुम्हारे हाथ रख कर,
आशिर्वाद देती रहें
कर जोड़ कर विनती करूं ,
अरु शीश चरणों मैं धरू
॥सुनो जी भैरव लाड़िले… ॥
॥ इति श्री भैरव आरती ॥
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